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महानगर / सत्यप्रकाश बेकरार

ईंट और सीमेंट के इस जंगल में
हैरानो-परेशान सा मैं घूम रहा हूँ
कोई जुबां खोले, कोई आवाज तो दे
मैं सदियों से यहां इंसां का पता पूछ रहा हूँ