Last modified on 1 अक्टूबर 2016, at 20:36

महानगर की विदाई / लक्ष्मीशंकर वाजपेयी

नहीं, ये उचित नहीं
कि मैं दरवाजे से ही चिल्लाकर कह दूँ
कि अच्छा मैं चलता हूँ,
और तुम रसोईघर से ही कह दो
अच्छा ठीक है
बेहतर है जाने से पहले
मैं तुम्हें ठीक से देख लूँ
और तुम देख लो अच्छी तरह;
क्योंकि इस खूँखार महानगर में
इतनी निश्चितता से
नहीं दी जा सकती विदाई
नहीं पाली जा सकती
शाम को सकुशल मिलने की आश्वस्ति।