महानगर के जग-मग करते व्यस्त राजपथ के इस पार
जाने कब से ताक रही है टुकुर-टुकुर बकरी लाचार
उसको क्या मालूम कि यह है वधिकों की नगरी खूँखार
उसके सिर पर स्वार्थ-लोभ की लटक रही चम-चम तलवार
उसके भूचुंबी थन घिस-घिस छिल-छिल जाते बारम्बार
दूधभरे थन से रह-रहकर बह पड़ती लोहू की धार
उसके लिए नहीं रुक सकती पलभर ट्रैफिक की रफ़्तार
माँ-माँ करते उसके बच्चे आस देखते हैं उस पार।