समय के दलदल में
डूबता है सभ्यता का जंग लगा पहिया
किनारे खड़ा रोबोट
देखता है चुपचाप निर्विकार
ख़ला में तैरती हैं
पक्षियों के टूटे हुए पंखों की उदास छायाएँ
सन्नाटा टूटता है
दलदल के तल से उभरती हैं सहसा
छिपे हुए झींगुरों की असंख्य आवाज़ें
क्षितिज पर फूटती हैं रौशनी की किरणें
लौटती हैं टूटे हुए पंखों की छायाएँ
लौटता है रोबोट
लौटता है सभ्यता का जंग लगा पहिया