नाम मदन मोहन था लेकिन काम सरह-शंकर के
जब जन्मे था, गूंजा था संगीत सुरों में सप्तम
काशी बोल उठी थी हर हर महादेव और बमबम
पुलकित प्राण हुये थे, धूमिल और मलिन चीवर के ।
जागा था आलोक ज्ञान का तम को दूर हटाए
पराधीन भारत की जड़ता टूटी, चूर हुई थी
बरगद बन कर तनी लता, जो कल तक छुई-मुई थी
था प्रयाग की गंगा में भारत ही खड़ा नहाए ।
मंत्रा किसी ऋषिवर का, जिसको जन-जन जाप रहा था
लोकहितैषी, धर्महितैषी, पूर्ण पुरुष के कामी
देवदूत, ईश्वर के भू पर, निर्मल गुण के स्वामी
समय-शिशिर को घूर बनाकर योगी ताप रहा था ।
हिन्दू था, लेकिन हिन्दू से बहुत-बहुत ऊँचा था
घोर मिलावट के कलियुग में वह खाँटी-सूचा था ।