बंद करो किलै रा फाटक,
म्हारो पूत भाज‘र आयो।
धिक्कार तनै ओ बेटा बैरी,
राजपूत रो मान गमायो।
जा कठै ही भेडां में बसज्या,
मत किले नै सरम दिला तूं।
डूब मर चुल्लू पाणी में,
मत दूध नै लाज दिला तूं।
जा गीदड़ घुरी में घुसज्या,
आ धरती शेरां री बस्ती।
म्हें मरण त्योहार मनावां,
तूं ढूंढ कठै ही जीवण मस्ती।
आ बात बीच में ही रहगी,
महामाया नैण सुरख होग्या।
बोली म्हारा पति रण छोड़‘र
भाज बीच में ही आग्या।
फाटक खोलो मां ले आओ,
अै काली राता ऊं डरसी।
गादड़ बोल्यां ऊं डरसी,
स्यालां सांपा ऊं डरसी।
शेरां री बोली ऊं डरसी,
बिल्ली आंख्यां ऊं डरसी।
आं रो कालजो कोमल है,
भूत पलीता ऊं डरसी।
फूलां री सैज्यां पर ल्याओ,
पंखे री पून दिलाऊंली।
पग चंपी करगे मैं आनै,
फिर मीठी नींद सुलाऊंगी।
गुलाब रा फूलां रा सूणा,
पंखड़ियां सा कोमल कोमल।
ई रण री बातां छोड़ो थे,
म्हारै मुंह सूं सुणसी मोमल।
रण में तलवारां री टक्कर,
बै डरै कील रो खट खट स्यूं।
बढ़ै शेर सी चिंघाड़ां,
डरपै चूसै री चटपट स्यूं।
थे म्हानै घोड़ो मंगवा द्यो,
बढ़िया तलवार चिलकती-सी।
पूरे रण रो साज सजा,
मैं चढ़स्यूं चाल किलकती-सी।
म्हानै है मान मर्यादा री,
मां री ईं धरती माता री।
गढ़री आं गढ़पति री,
जीवण री जीवण रै दाता री।
मैं देस्यूं शीश धरा खातर,
ईं मां खातर मां रै जस खातर।
सौगन्ध लेऊ हूं चरणां री,
आशीश देओ मरणै खातर।
महामाया रणचण्डी बणगी,
महाकाल री छाया-सी।
भय-सी और भवानी-सी,
शिव रै तांडव काया-सी।
बा चली हाथ में तेग लियां,
बोल हर हर हर महादेव।
भैरव स्यूं पहुंची तोरण पर,
सिमर या अपणा यूं ईष्टदेव।
खुलग्या फाटक राजा देख्यो,
वा राणी हो या काली हो।
बात समझ में ना आई,
बोली राणी आ वाणी ही।
जाओ सेज्यां पर सो ज्याओ,
बै गीत अडीकै मरवण रा।
मूंछ कटा‘र ओढो साड़ी,
नाच नचाओ ढोलण रा।
तलवार करो मेरै कानी,
थे चूड़ी पहन घर में हालो।
मत मिनख पणै नै सरमाओ,
ओढ़ घूंघटो अन्दर चालो।
बैणां स्यूं बिजली-सी चाली,
रजपूती खून उमड़ आयो।
राजा समझ्यो माता म्हाने,
क्यूं दूध धाय रो ही पायो।
नैणा में रगत उतर आयो,
रग रग में उमड़ी रजपूती।
घोड़ै रै एड़ लगाई बण,
तलवार चमकती अब सूंती।
माता रे हरख हुयो भारी,
महामाया नैण चमकता हो।
रजपूती लाज बचाली बण,
आंटीला आंसू सजता हा।