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महा-मरी / राजूराम बिजारणियां

खेत सूं घर
घर सूं खेत
आवता-जावता
देखता दूर सूं
टोकी री पड़ाल लारै
गुडाळियै बैठ्यै
गढ़ रिमल्याळी नै।

करतो मन
पूगूं
गढ़ दरवाजै
भरल्यूं
आंख्यां में
मोवणां मांडणां।
चुगल्यूं
लाल-लाल भुरभुरी ईंट।

रमतियां ओळावै
जोऊं खूणांे-खूणांे।


रोक देंवती चाल
दे देंवती दावणो
मन रै काचै पगां
दा‘सा री दकाळ!

लोग कैवता-
इकोतरियै री मरी
खायगी रिमल्याळी
गिटगी गढ़ माणस सैती.!
होयग्यो गांव खाली.!!

अबै जीव रै नांव
उडै कोनी चिड़ी ई
उण ठौड़.!!

चिड़ी तो डरै
म्हारै गांव कानीं जावण सूं ई।

चाणचक उठणो
होवणा गांव रा गांव खाली
रातो-रात
कमती थोड़ो ई है
महा-मरी सूं!