बहुत धीरे-धीरे बीतता है
महीने का आख़िरी सप्ताह
डबरों की तरह खाली हो जाते हैं
सामानों के सारे डिब्बे
घर के दरवाज़े से
इन्हीं दिनों लौटना पड़ता है
भिखारियों को खाली हाथ
इन्हीं दिनों खाली हो जाती हैं
हमारी तमाम जेबें
डोलने लगती है
पिता के चेहरे पर उधारी की छाया
हम सब इन दिनों के
ख़त्म होने का इन्तज़ार करते हैं ।