माँसाहारी जग-होटल में
शाकाहारी मन
कैसे करे गुजारा?
होटल-
जिसमें एक-दूसरे को
मानव खा जाता
सुरा समझकर
जिसमें शोणित नर का,
नर पी जाता
“बैरा-झूठ”, घृणा-बावर्चिन”
फेंक रहे हर दिन
कोई गलत इशारा।
होटल-
जिसके दरवाजे हैं
बड़े सजे-संवरे
लेकिन हैं
अश्लील जहाँ के
नाजा़यज कमरे
रखे जगत के वेश्यालय में
कब तक साँस-दुल्हन
आँचल पर ध्रुवतारा?