हर माँ
ख़ामोशियों की खपच्चियों से
करती है पिता के गुस्से का सामना
आँसुओं से करती है प्रतिवाद
उसकी ख़ामोशियों में हो जाते है शामिल बच्चे
फिर धीरे-धीरे
सन्नाटा छँटने लगता है
माँ की नम आँखों में
अपनी सजल आँखे मिलाते पिता
माँ के हदय को छूते है
फिर सुख-दुःख की गठरी
एक साथ ढोने लगते है
ऐसा होता है
हर घर में
कभी न कभी