जगजननी है माता, सृष्टिपालिका है माता,
माँ तो निज शोणित से, सृष्टि को रचाती है l
माँ है गुरुओं की गुरु, माँ है ज्ञान सिंधु जैसी,
प्रथम गुरु वो बन चलना सिखाती है l
गरमी में छांव है माँ, सर्दी की धूप है माँ,
सारे संकटों से अपने लाल को बचाती है l
पालती है पोसती है, सींचती है बच्चों को वो,
आँचल से ममता की सुधा को पिलाती है l
देवकी सी माता बन, देती है हरि को जन्म,
माता ही यशोदा बन, पालना झुलाती है l
माता जीजाबाई जैसी होती है सबल, जो कि
शिवा में साहस भर, शिवाजी बनती है l
माता पन्नादाई जैसी, रखती स्वदेश आन,
हँसी-ख़ुशी देश पे जो पुत्र को लुटाती है l
होते हैं कपूत पूत, माता न कुमता होती,
माता तो कपूत को भी गले से लगाती है l
बाल-दुःख पा अधीर, नयन समाए नीर,
बच्चों की पीड़ाओं को माँ अपना बनाती है l
बच्चे, बूढ़े पूरे परिवार को संभालती है,
रोटियों के संग नित हाथ को जलाती है l
सृष्टि के प्रत्येक कण की है जो आधार रूपा,
वो भी माँ की उपमा से गौरव को पाती है l
माँ का पा चरणरज 'राहुल' के भाग जगे,
माँ वो जो त्रिदेव को भी बालक बनाती है l