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माँ का सिंगारदान / विहाग वैभव

हर जवान लड़के की याद में
बचपन
सर्दियों के मौसम में उठती
गर्म भाप सा नहीं होता
रेत की कार में बैठा हुआ लड़का
गुम हो गया मड़ई की हवेली में

हमारे प्रिय खेलों में
सबसे अजीब खेल था
माँ के सिंगारदान में
उलट-पलट, इधर-उधर
जिसमें रहती थी
कुछेक पत्ते टिकुलियाँ
सिन्दूर से सनी एक डिबिया
घिस चुकी दो-चार क्लिचें
सस्ता सा कोई पाउडर
एक आईना
और छोटी-बड़ी दो कंघी

हमने माँ को हमेशा ही
ख़ूबसूरत देखना चाहा
हम नाराज़ भी हुए माँ से
जैसे सजती थी
आस-पड़ोस की और औरतें
माँ नहीं सजी कभी उस तरह
माँ उम्र से बड़ी ही रही

हमने माँ को
थकते हुए देखा है
थककर बीमार पड़ते देखा है
पर माँ को हमने
कभी रोते हुए नहीं देखा
हमने माँ को कभी
जवान भी नहीं देखा
बूढ़ी तो बिल्कुल नहीं

मैंने सिंगारदान कहा
जाने आप क्या समझे
मगर अभी
लाइब्रेरी के कोने में
एक लड़का सुबक उठ्ठा है

मेरी दवाइयों के डिब्बे में
सिमटकर रह गया
माँ का सिंगारदान ।