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माँ के प्रति / जयशंकर पाठक 'प्रदग्ध'

माँ! आज तुम्हारे चरणों में,
यह गीत समर्पित करता हूँ।

यह मध्यरात्रि, यह अन्धकार,
ठहरी सुधियाँ, गूँजा दुलार।
मैं पथिक! थका, हारा, निराश,
तुम बनी मार्ग, तुम दिशाकाश।

मैं आज तुम्हारी ममता से-
ममता को उपमित करता हूँ।
माँ! आज तुम्हारे चरणों में,
यह गीत समर्पित करता हूँ।

मैं शिलालेख, तुम वर्ण-वर्ण,
मैं पौध नवल, तुम पर्ण-पर्ण।
तुमसे इस जीवन में प्रभात,
मैं पुष्प! और तुम पारिजात!

मैं आज तुम्हारे सौरभ से-
उपवन को सुरभित करता हूँ।
माँ! आज तुम्हारे चरणों में,
यह गीत समर्पित करता हूँ।

कामना मात्र मेरी अशेष,
देखूँ तुमको नित निर्निमेष।
करनी थी तुमसे और बात,
पर गुजर गई यह शुचित रात।

मैं आज तुम्हारे सपनों से,
निज सपने कुसुमित करता हूँ।
माँ! आज तुम्हारे चरणों में,
यह गीत समर्पित करता हूँ।