चूल्हे में बची हुई चिनगारी
को देखती हुई
माँ को लिख रही हूँ
कि नहीं होती अब कोई शिशिर-हेमन्त
जब गाती है चिड़िया
खुले आकाश की ओर मुँह किये
और हँसता है बच्चा
फूँकता है मोमबत्ती
अपनी पहली वर्षगाँठ पर
पूजा पर रखे अक्षत की तरह
जब होती है माँ की हँसी
सिन्दूर की तरह दमकता है
उसका पूरा चेहरा
तभी वसंता होता है
तभी
और कुछ नहीं होता ।
१० अप्रील, १९८५