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माँ क्या होती है? / अनुभूति गुप्ता

भीगी आँखों को मेरी
जो पोछती है,
मेरे अशान्त अन्तर्मन को
टटोलती है।
हर पहर का आरम्भ,
मेरे मन की आस,
प्यारी न्यारी
वह माँ होती है।

जो धूप में छाँव दे
मेरे मन को,
जो गोद में भर ले
मेरे तन को।
जो खुद
नम धरती पर सोये,
मेरे ग़म के
हर अश्क़ को धोये।

गिरती हूँ तो
थामने को माँ होती है,
रात की तन्हाई में
साथ माँ होती है।
अपनी रोटी
मेरी थाली में सरकाये,
मैं पेटभर जब खाऊँ
वह मुस्कुराये।

नयनों में
शीतल धारा जैसी,
गगन में
चमकीले तारा जैसी।
मेरी हकलाती जुबाँ को
शब्द देती है,
माँ, हर गिरते शब्द को
थाम लेती है।

मेरे आँसुओं को
आँचल में पिरोती है,
माँ संसार में
सबसे अनमोल होती है।
अब किन शब्दों में बयाँ करूँ,
कि- माँ क्या होती है?