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माँ ने भिजवाई पंखियाँ / शशि पाधा

मेरी छम छम बरसें अखियाँ
माँ ने भिजवाई पंखियाँ।

मेरी पंखी चांदी की जड़ी
संग झूमें मोती की लड़ी
पीहर से आई पंखियाँ

मेरी पंखी सजती झालरें
तेरे नैना नेह की गागरें
क्या बाँध के लाई पंखियाँ

मेरी पंखी रुनझुन घूँघरू
तेरे कानों के दो झूमरू
तेरी याद दिलाएँ पंखियाँ

मेरी पंखी धीमे डोलती
माँ आन झरोखा खोलती
माँ सी मुस्काई पंखियाँ

मेरी पंखी क रँग केसरी
माँ लगता द्वारे आ खड़ी
मैं देखूँ जब भी पंखियाँ

मैं पंखी धीमे फेरती
क्यूँ लगता माँ तू टेरती
माँ झोलूँ तेरी पंखियाँ

मेरी पंखी काँपे हाथ में
तू क्यूँ ना आई साथ में
माँ क्यूँ भिजवाई पंखियाँ?