उज्ज्वल-वल्कल-वसन फेंक कर
धारण कर ले रक्ताम्बर!
आज प्रकट कर माँ! अपनी
लोहित असि का झंकार प्रखर!
विष-मदिरा पी ओ प्रलयंकरि
कर प्रमत्त तांडव-नर्तन!
रूद्रे! देख रूद्रता तेरी
कर ले बन्द त्रिलोक नयन!
मैं नाचूँ पागल-सा हँसकर
देख वेश तेरा नूतन!
बज्र-कलम से लिखूँ, अग्नि की
भाषा में कविता भीषण!
शंकर के वक्षस्थल पर कर
रक्त-चरण से देवि! प्रहार!
आज हिलादे ब्रह्मासन को
और मचादे हाहाकार!
धधका दे द्रुत फूँक जगत में
आग जहन्नुम की विकराल!
भीमे! आज मुझे तू दे दे
अपने हाथों की करवाल!
8.1.29