माँ शारदे ! वह सार दे
सब अँधेरा दूर कर दे
जग में तू वह प्यार भर दे ।
नष्ट हो अज्ञान सारा
बह उठेगी प्रेम-धारा।
एकता ऐसी प्रबल हो
एक सबके भाव, बल हों
शीश ऊँचा देश का हो
हम सबको ऐसा वर दे।
आह्लाद से पूर्ण मन हों
कपट से भी दूर जन हों
प्रेम के खिलते सुमन हो
सुगन्ध से सिक्त पवन हो
सरिताएँ हों सब मधुमय
मधुर मन के तार कर दे।
-0-(1-1-86: रसमुग्धा अक्तु-दिस-86)