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माँ - 3 / कुलदीप कुमार

घर से ख़त आते हैं

मैं काँपता नहीं
क़ातिल जैसे सधे हाथों से
किताबों में रख देता हूँ

माँ किताबों से डरती है
जिनके साथ मैं घर से भागा