सपने में दिखी माँ
वैसी ही सुंदर, गोलमटोल
जैसी साठ बरस पहले
आँखों में नहीं थीं झुर्रियाँ
गालों में नहीं थी काली गहराई
हाथों से छूटकर नहीं गिर रही थी
दृष्टि
वह स्याह फ्रेम में जड़े
फोटो में खड़ी थी
गोद में उठाये शायद मुझे
तब उसका चेहरा कातर नहीं था