Last modified on 18 जुलाई 2010, at 04:18

मां-२ / ओम पुरोहित ‘कागद’

साठ साल पहले
अपने दहेज में आई
संदूक को
अपनी खाट के नीचे
रख कर सोती है मां !

रेज़गारी रखती है
तार-तार हुई सी
पुरानी गुथली में
फ़िर उसे
सलीके से समेट कर
रख देती है
पुरानी संदूक में !

पौती-पौते संग
खेलते-खेलते
फ़ुरसत में कभी
निकाल कर देती है
अठन्नी
चवन्नी
मीठी गोली
चूसने के लिए !

अनुवाद-अंकिता पुरोहित "कागदांश"