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माघ केॅ ओस / सुधीर कुमार 'प्रोग्रामर'

माघ केॅ ओंस मेॅ फूल पेॅ।
छै वहा जे छेलै पूल पेॅ।

जाड़ मेॅ हाड़ कंापै सुनोॅ
सब चलै मौसमी रूल पेॅ।

थर-थराबै गुहाली मेॅ जेॅ
जीनगी फाटलोॅ झूल पेॅ।

खूब लूटै खरूभा मजा
ध्यान रखिहोॅ बड़ाॅे भूल पेॅ।

तड़-फड़ाबै जुवनका मतर
हांथ धरनेॅ रहोॅ मूल पेॅ।