माटी मिनख नै
चाइजै कित्ती’क?
स्सौ कीं हुवतां थकां ई
माटी सारू लड़ै है
माटी रा मिनख।
भटकावै है मन
जोड़ै है जुगत
माटी री माटी सूं!
माटी री बणत सूं
मन नै भटकावण मांय
बेजा ई सौरप है।
एकर चींत
मीत!
इण माटी री सौरप नै
सोच,
कै आ कांई चावै
जिण सूं घड़ीज्या हा-
थूं अर म्हैं।