मानववाद
मनुष्य
पहले तो ख़ुद को पूरी तरह बर्बाद करे
चरस ले, गाँजा पिये
अफ़ीम लालपरी खाए
छक के देसी दारू पिए
इसको, उसको, किसी को भी
माँ-बहन की गालियाँ दे
पकड़कर पीटे
मर्डर करे
सोते हुओं का क़त्ल करे
लड़कियों-छोरियों को छेड़े
क्या बूढ़ी, क्या तरूणी, क्या कमसिन
सभी को लपेट कर
उनका व्यासपीठ पर करे बलात्कार
ईसा के, पैगम्बर के, बुद्ध के, विष्णु के वंशजों को फाँसी दे
देवालय, मस्जिद, संग्रहालय आदि सभी इमारतें चूर-चूर कर दे
दुनियाभर में एक फफोले की तरह फैल चुकी
इन इनसानी करतूतों को फूलने दे
और अचानक फूट जाने दे
इसके बाद जो शेष रह गए
वे किसी को भी गुलाम न बनाएँ
लूटें नहीं
काला-गोरा कहें नहीं
तू ब्राह्मण, तू क्षत्रिय, तू वैश्य, तू शूद्र ऐसे कहकर दुत्कारें नहीं
आकाश को, पिता और धरती को माँ मानकर
उनकी गोद मे मिल-जुलकर रहें
चान्द और सूरज भी फीके पड़ जाएँ
ऐसे उजले कार्य करे
एक-एक दाना भी सब बाँट कर खाएँ
मनुष्यों पर ही फिर लिखी जाएँ कविताएँ
मनुष्य फिर मनुष्यों के ही गीत गाएँ
मूल मराठी भाषा से अनुवाद : हितेन्द्र अनन्त