निकल आए हैं -- केंचुआ, घोंघा, बेग-मेंढक कमरे के कोने में भरा पड़ा बीटल झींगुर, दीवार पर छिपकली । रेंग रहे हैं चारो ओर पाँवहीन पंखहीन जंतु-अजंतु । उन्ही में न रहते हुए दरवाज़े के बाहर-भीतर हो रहा हूँ -- चारों ओर उदारीकरण के मातम से बचा हुआ हूँ ।