जै जै श्रीगनेस नायक। प्रथम पूज्य विद्यादायक॥
शुरू आखिर के सुरूता चाहीं। बरता बाहर-भीतर माहीं॥
राम गति देहु सुमती। से कहवाँ गइलन सुरस्वती॥
चरन कमल मँह गिरत बानी। कतहूँ से कसहूँ दऽ आनी॥
मातु-पिता-गुरु चरन में निते। प्रेम सहित जीवन भर बीते॥
जइसे रामचन्द्र के प्रीति। ओसहीं मन करीहऽ परतीति॥
भादो शुक्ल चौथ शुभ बारा। आज भइल बड़ भाग हमारा॥
श्रीगुरु चरन द्वार पर आके। याचक भइलन अवसर पाके॥
बावन जी बन गइलन आज। बली समुझ बालक के काजू॥
दरब-दौलत देवे के चाहीं। माई-बाबू समुझऽ मन माहीं।
आज के गइल वरीसवा दिन। तबहीं चरन लवटीहन फीन॥
जथायोग सनमान करी जै। राम नाम रस अमृत पीजै॥
चाखऽ अमर फल मानुष तन पाके। पाछे का करब पछता के॥
सोसती श्री लिखत सब लोगु। सत उपमा देबहीं के जोगु॥
गऊ-ब्राह्मण के रक्षा कारी। त्रेता अवध मनुज अवतारी॥
लिखे के निमन बनल बा रास्ता। नाहीं त रतन जात बा सहता॥
राम नाम लिखलन प्रह्लादु। पढ़ऽ रामायण बुझऽ संबादू॥
आदि आज तक इहे जनाता। अधम उधारन मनाता।
दिहलन साहेब गरीब-नेवाज। हिन्दू कर अजादी राज॥
खुदा खुदसर निरबान। जवन बतावत बेद-कुरान॥
निरगुन सरगुन के मत एहू। माता सेवा में राखहू नेहु॥
यह तन के जर बाप-मतारी। सरवन के फैलल जस भारी॥
माई-बाप के सेवा करीलऽ। रतन अमोल भंडार में भरीलऽ॥
अनधन बढ़ी सदा सनतान। अमरलोक चढ़ी चलऽ विमान॥
खात ‘भिखारी’ सवादत नीके। सीताराम बिनु सब रस फिंके॥
मानहिं मातु-पिता नहिं देवा। साधुन्ह सन करवावहिं सेवा॥
(सोरठा 183/2 रा.म.बा.)
जेहि-जेहि देस धेनु द्विज पावहिं। नगर गाउँ पुर आगि लगावहिं॥
(रा.म.बा.का. 182/6)
वार्तिका:
विवाह का पहिले माई लोग साँझा-पराती गावेला, जेह गीत में माता-पिता के नाम के उचारण होखेला। शादी के पहिले मातृ (मातिर) पूजा होखेला। पुरुखा लोग के पिण्डा दियाला। बेटा भइला पर नन्दी मुख श्राद्ध होखेला। पितृ के पिण्डा दिआला; से ही माता-पिता के जिअता भर में नीमन भोजन-कपड़ा देवे के जरुरत बा, तेकरा से नीमन बात बतिआवे के सावंग नइखे लागत।
गौशाला, धर्मशाला, पाठशाला बहुत बन गइल। बूढ़ के वास्ते बूढ़शाला गाँव-गाँव में बनवा देवे के जरूरत बा। मतारी निर्गुन होके पेट में रखली, सरगुन होके पोसली, कुली होके गोदी में लेले चलली। मेस्तर होके गूह-मूत सफाई कइली। धोबी होके गड़तर सफाई कइली। खिजमतिया होके देह में तेल लगवली।
दोहा
भादो मास खरवॉस में पूजन करिहऽ नीत।
माता नाम के करहु उचारन करि-करि के परतीत॥
माता भक्ति परिपूजन, सनमुख हाजिर हजूर।
कहत ‘भिखारी’ एह गरजी पर, मरजी करहु जरूर॥
दोहा
माई सम सुखदाई जग में, केहू ना लऊकत हीत।
चरन कमल में ध्यान लगाके, चलहु जगत से जीत॥