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मातृवंदना / कालीकान्त झा ‘बूच’

जननि हय, जीवन हमर कठोर
अध्यावधि सुख-शांति न भेटल,
पयलहुँ विपति अघोर
जानी नहि वात्सल्य-पाश
अज्ञात सिनेहक कोर
लागल नहि ऑचर क छाँह
नहि सटल गाल पर ठोर
आनन पर अविराम रूदन
मन पर चिंता घनघोर
कतऽ हमर विश्राम-राति हे,
कतऽ विनोदी भोर?
अपने शिव शव वनल शिवे,
तोरो छह लगल बकोर
तोहर दया अकाशी चंदा,
हम धरती क चकोर