जिस-जिसकी पूँछ
उठाई उस-उसको मादा पाया ।
कुछ के शब्दों में
जलते अंगार भरे हैं,
कुछ के सारे ज़ख़्म अभी
तक पूर्ण हरे हैं,
कुछ के संगी-
साथी हैं जालिम सरमाया ।
कुछ तो पुरस्कार
पाने को लालायित हैं,
कुछ तो अपनी घोर उपेक्षा
से विस्मित हैं,
कुछ ने सत्ता के
जूतों को है चमकाया ।
कुछ हैं सत्ता के
विरोध की ध्वजा उठाए,
डोल रहे कुछ
चयन-समिति के दाऐं-बाऐं,
जमघट देख
जोकरों का मैं हूँ शरमाया ।
अकविता के श्रेष्ठ कवि धूमिल से अनुप्राणित