माधव दिवाने हाव-भाव
पै बिकाने
अब कोई चहै वन्दै
चहै निन्दै, काह परवाह
वौरन ते बातें जिन
कीजो नित आय-आय
ज्ञान, ध्यान, खान, पान
काहू की रही न चाह
भोगन के व्यूह, तुम्हें
भोगिबो हराम भयो
दुख में उमाह, इहाँ
चाहिये सदा ही आह,
विपदा जो टूटै
कोऊ सब सुख लूटै
एक माधव न छूटै
तो कराह की सदा सराह!