शहर से गुज़रते हुए
हम मानचित्र में देख रहे थे
यातना शिविर कहाँ थे ?
बमबारी कहाँ हुई थी ?
रेफ़्यूजी कैम्प कहाँ-कहाँ लगे थे ?
पर यातनाएँ और अवसाद वहाँ नहीं थे
सड़क रेलमार्ग बन्दरगाह
सभी के चिह्न थे
पर गोलियों के छर्रे
धमाके चीत्कार और
थक्कों के लिए कोई भी सँकेत
वहाँ नहीं दिखा
तभी तुमने उँगली रखकर
मेरा गाँव दिखाया मुझे
मैंने गिने तो नदियाँ और महासागर पूरे थे
पर वहाँ खेतों के दक्खन में
जो राजपूतों का कुँआ हुआ करता था
वो रिस गया है
सतत फैलता शहर
बेतहाशा बिखरा पड़ा था
पर शहर से गुज़रते हुए
जो गाँव छूट गया भीतर
उसके प्रवासी लोकगीतों का कलरव
मानचित्र में नहीं था
अक्षांश और देशान्तर
एकदम सटीक थे
स्थिर थे लगतार खिसकते महाद्वीप
हर चलायमान गतिशीलता दर्ज़ थी
बस, निष्कासित आँखों का
पलायन वहाँ दर्ज़ नहीं था !