मानवीयता
एक नैतिक आग्रह है,
संघर्ष की जिजीविषा है...
अभिषप्त दायरों को तोड़ती दुनिया पत्थरों की तरह
विद्रूपता और मिथकीयता में
सभ्यता विमर्ष
बस, बौद्धिक स्वर भर
बदलाव की खाई भरने के लिए
त्र्मृण की लिपि व स्याही सूख चुकी है
अब बन्द करो देवताओं के गान
चीत्कारों मे मत ढूँढ़ो संगीत
नई कलम तराशकर लिख जाने दो
स्वाभाविकता का प्रेम सन्देश
क्योंकि अब न राजा है
न प्रजा
न साम्राज्य ।