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मानवीय बनाम प्राकृतिक / रेखा चमोली

ये कुछ शब्द ही थे
जिन्होंने पलट दी बाजी
शब्द कुछ दिन पहले
दिल्ली से चले थे
पहाड पहुॅचते पहुॅचते
बजे चारों ओर
पूरी धमक से
ये एक लम्बी श्रृंखलाओं की कडी थी
छोेटे छोटे झूठों से बडे झूठ छिपाने की
छोटी छोटी धोखाधडियों से
बात पलटने की
चूंकि हममे से कुछ एक की ही पहुॅच थी
कागज ,मशीनों व आकाशीय तरंगों तक
और ये सबसे आसान भी था
सारा दोष भूत तत्वों के मत्थे जड देना
तो गलतियां करते रहे हम
तब भी जब होश में थे
तब भी जब धुत पडे थे
सामने वाले साक्षर होते होते बचे थे
राष्ट्रीय अन्तराष्ट्रीय बहसों का मुद्दा थे
मुनाफा थे
बाबजूद इसके कहीं गिनती में नहीं थे
इसीलिए हमने चुने
अपने मनमाफिक शब्द
गढ़ी परिभाषाएं
दिए बयान
अब हम मुक्त थे
हर तरह की जिम्मेदारियों से ।