Last modified on 19 सितम्बर 2024, at 20:55

मानव और मर्म / विश्राम राठोड़

ना पाने की चाहत है ना खोने का डर है
हम ही मंज़िल हम ही पथिक है
हम ही स्वर है, हम ही रसिक है
हम मिल जाये वह ही वैदिक है

यह ताउम्र को दौर तौफीक कमाने में चला गया
तरस भी आयी वक़्त को हमे भी समझा गया
यह अपना -पराया, ज़िन्दगी के रिश्ते में पाया
जब तक नासमझ था, मैंने सब कुछ पाया

स्वार्थ, लोभ, मोह आए सब कुछ गंवाया
हम मानव है तो हमें मनन करना चाहिए
ईश्वर ने हमें कितना दिया उसका निश दिन वन्दन करना चाहिए
लाख कोशिश के बावजूद हमें जतन करना चाहिए
हमें कर्म तो करना, यह हमारा कर्म होना चाहिये
लाख कमाओ आप, पर कभी कोई भूखा सोना ना चाहिए
हम मानव है, बस हमें मानव रहना चाहिए
ना पाने की चाहत है ना खोने का डर है

स्वार्थ, लोभ, मोह आए सब कुछ गंवाया
हम मानव है तो हमें मनन करना चाहिए
ईश्वर ने हमें कितना दिया उसका निश दिन वन्दन करना चाहिए
लाख कोशिश के बावजूद हमें जतन करना चाहिए
हमें कर्म तो करना, यह हमारा कर्म होना चाहिए
लाख कमाओ आप, पर कभी कोई भूखा सोना ना चाहिए
हम मानव है, बस हमें मानव रहना चाहिए
यूं अफ़सोस ना हो ज़िन्दगी में कभी कोई कमी ना खलनी चाहिए
यह ऐशोआराम की ज़िन्दगी का भरोसा नहीं
हमें हमारे मालिक पर भरोसा होना चाहिए
हम सब किरायेदार हैं, तो किरायेदार की तरह रहना चाहिए
विश्व जगत में शांति यह सबका सपना होना चाहिए
मैं जगह हम यह गीत गुनगुने चाहिए