Last modified on 27 नवम्बर 2015, at 05:15

मानव मत तुम घबड़ाओ / जनार्दन राय

मानव मत तुम घबड़ाओ।
मिली है जिसको सुख की रात,
उसी को मिलती दुःख की रात,
और हो जाते ही है प्रात,
खुशी से तुम गाते जाओ।
मानव! मत तुम घबड़ाओ।

मिले हैं तुमको पथ में फूल,
मिले तुमको ही हैं कुछ शूल,
सभी तो होंगे ही निर्मूल,
इसी से बढ़ते तुम जाओ।
मानव! मत तुम घबड़ाओ।

कभी जाने बनते अनजान,
कभी अनजाने बनते जान,
सभी को तो खोने हैं प्राण,
इसी से हंसते तुम जाओ।
मानव! मत तुम घबड़ाओ।

मिली थी गीत खुशी की माल,
गले में विरह व्याल लो डाल,
सभी को होना है बेहाल,
इसी से मुस्काते जाओ।
मानव! मत तुम घबड़ाओ।

गई है तेरी किस्मत फूट,
किसी की दुनियां मत लो लूट,
विरह-बन्धन जायेंगे टूट,
इसी से मस्ती में धाओ।
मानव! मत तुम घबड़ाओ।

भोग-पथ से आये हो भाग,
जोग-पथ में न सकोगे जाग,
रोग-पथ में भी लगती आग,
इसी से दुःख तजते जाओ।
मानव! मत तुम घबड़ाओ।

-दिघवारा,
10.1.1953 ई.