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मानव रक्त / हरिवंशराय बच्चन

रक्त मानव का हुआ इफ़रात।

अब समा सकता न तन में,
क्रोध बन उतरा नयन में,
दूसरों के और अपने, लो रंगा पट-गात।
रक्त मानव का हुआ इफ़रात।

प्यास धरती ने बुझाई,
देह मल-मलकर नहाई,
हरित अंचल रक्त रंजित हो गया अज्ञात।
रक्त मानव का हुआ इफ़रात।

सिंधु की भी नील चादर
आज लोहित कुछ जगह पर,
जलद ने भी कुछ जगह की रक्त की बरसात।
रक्त मानव का हुआ इफ़रात।