धरती की बेटी-संस्कृति:
सुन्दर है! लोन-छब, नाक-नक्श आकर्षक;
अंगों में दबी है सुरभित लावण्य की
कोई लहक-दहक!
आँखें-कँटीली; रूप में सम्मोहन!
दाड़िम-सा फूट पड़ने को था मानो इसका यौवन!
पर
पथ-भूली, खोई-खोई सी रहती है; करती रहती है
मन में स्वेटरी उधेड़-बुन;
जाने क्या खाये जा रहा है इसे-
कोई भीतरी घुन!
पीलिया, सूखा, मिरगी, टी.बी. या कैंसर-
है क्या बेचारी अपने किसी रोग से बेखबर!
आँखें सूनी-सूनी!
अरे, रोग है इसे तो कोई अन्दरूनी!
जल्दी चॅक कराओ!
1976