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मानुषी / पारिजात / सुमन पोखरेल

तुम जितना कर सकते हो
उतना मैं भी कर सकती हूँ
तुम्हारी ही तरह हाथ-पैर चला सकती हूँ
पसीना बहा सकती हूँ
तुम्हारे सारे जज़्बात
मेरे भी जज़्बात हैं,
लेकिन इतिहास ने
न जाने कहाँ ला के पटक दिया मुझे
पता चला कि, तुम तो मुझसे मीलों आगे निकल चुके हो ।

तुम और मैं एक नहीं हैं
एक-दूसरे के पूरक मात्र हैं
इसलिए तुम मेरे अनेकों जज़्बातों के भागीदार नहीं हो सकते
मैं तुम्हारे मृत देह के साथ ज़िंदा मर सकती हूँ
मैं तुम लोगों के सामूहिक बलात्कार को सहकर भी जी सकती हूँ
तुमको तो ऐसा कभी भी नहीं हुआ,
तुमने रजस्वला की कष्टदायक घड़ियाँ नहीं झेली हैं
तुम्हें अपनी अस्मिता को लेकर कोई जोखिम उठाना नहीं पड़ता
तुम्हें गर्भधारण के अतिशय उबाऊ अवधि का पता नहीं है
तुम्हें प्रसवकाल की असीम पीड़ा नहीं झेलनी पड़ेगी।

हाँ, मैं तुम्हारे बिना माँ नहीं बन सकती
लेकिन मैंने तुम्हें पिता बनने का श्रेय दिया है
फिर भी तुम उस नैसर्गिक मातृत्व को नहीं समझते
वह मेरी, और सिर्फ मेरी अनुभूति है।

क्या तुम्हें कभी किसी औरत ने बलात्कार किया?
क्या तुम्हें कभी किसी औरत ने कलंक का धब्बा लगा दिया?
क्या तुम्हें कभी किसी औरत ने बेच डाला?
तुम निरुत्तर हो इस सवाल के आगे,
आज की सत्ता पर कब्जा जमाकर बैठने वाले तुम,
सदियों पहले
झगडने वाला, ईर्ष्यालु वनमानुष तुम को
प्रेम और सह-अस्तित्व के आलिंगन में बांधकर
अपने गुफा की छत के अंदर ले आयी थी मैं
जैसे आज तुम
दहेज के लाव-लश्कर के साथ घूंघट के अंदर छिपाकर
रुलाते हुए किसी पशु की तरह घर लाते हो।

इसलिए तुम इतने विमुख मत रहो
इतने निर्दयी मत बनो,
इतने निष्ठुर मत हो
तुम मेरे उत्पीड़न को नहीं समझते
मैं तुम्हारे उत्पीड़न को समझती हूँ
आओ, आज हम अपने उत्पीड़नों को अदलाबदली करें
हम मानसिकता से एकाकार हो जाएँ
हम एक-दूसरे के बिना जी सकने वाले प्राणी नहीं हैं
मैं तुम्हारा हाथ मजबूती से पकड़ती हूँ
तुम मुझे जहाँ तक पहुँच सकते हो तुम, वहाँ तक पहुँचाओ
वहाँ, जहाँ तुमको मैं,
सभ्यता के आदिकाल में ही पहुँचा चुकी थी।

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