राजस्थानी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
भातृ भरण म्हारो बीरो आयो, मंगल मुहूरत शुभ घड़ी,
बेन उतार घर दरबार म, लूणा पोणी खड़ी खड़ी।
सोना के रो सूरज उगीयो बाबूजी र राजजी।
पिहरीया रो सूरज आयो, म्हारा आंगण आज जी।
मा को जायो लेकर आयो , झिल मिल तारा की चून्दड़।
बेन उतार घर दरबार म, लूणा पोणी खड़ी खड़ी।
इण चून्दड़ का हर धागा म ममता मां की झलक रही।
चारो पल्ला चून्दड़ का पिता की आशीष झलक रही।
किरण्या बरसण लागी म्हारे स्नेह हरक री चूंदड़ी।
जुग जुग जीवो भावज, आशीष देव बेनड़ी।
बेन उतार घर दरबार म, लूणा पोणी खड़ी खड़ी।