म्हारै मन
जीवै अजै
म्हारो गांव मुटळाई।
नानेरो मोटासर.!
पैंडो तीन कोस.!!
दे देंवता गेड़ां माथै गेड़ा
दादेरै-नानेरै बिचाळै
‘‘लौह-लक्कड़ चां चक्कड़,
किण रै घर रो डेरो’’
खेलतां खेलतां
हर सूं बंध्या।
गेड़ा तो आज ई देयल्यां
पण हर कठै.?
काटल्यां पैंडो
मारग कठै.?