बुन्देली लोकगीत ♦ रचनाकार: ईसुरी
मारत बिना अन्न हर सालै
पनमेसुर का पालै?
काय खाँ दुख दयैं रात हौं?
काटइ करौ हलालै।
सबै समेट इकटठौ लै जा
कात काय न कालैं,?
नोंनौ लगै अकेलो ईसुर
जब सब भिक्छ बड़ा लै।
मारत बिना अन्न हर सालै
पनमेसुर का पालै?
काय खाँ दुख दयैं रात हौं?
काटइ करौ हलालै।
सबै समेट इकटठौ लै जा
कात काय न कालैं,?
नोंनौ लगै अकेलो ईसुर
जब सब भिक्छ बड़ा लै।