(१)
बुद्धि पगड़ी सी बड़ी टीबो सा अनंत धन,
कोमलता भूमि सी स्वभाव बीच भरिए।
देशी कारबार में चिपकिए भरूँट ऐसा,
ऊँट ऐसी हिम्मत सहन-शक्ति धरिए॥
दम्पति में प्रीति-रीति रखिए कबूतर सी,
मोर की सी छवि निज कीरति की करिए।
मारवाड़ी भाइयों! मतीरे के समान आप
ताप परिताप निज भारत का हरिए॥
(२)
थोड़े में गरम फिर शीतल सहज ही में,
रेत का सा अस्थिर स्वभाव मत करिए।
रखिए सदैव गुणियों के अनुकूल मन,
कूप के समान दूर दान मत धरिए॥
बाजरे सा नीरस कटीले हो न कीकर सा
काचरे सी कटुता न मुख से उचरिए।
मारवाड़ी भाइयों! किसी के जो न काम आवे
ऐसा जन्म टीबड़े सा लेकर न मरिए॥