Last modified on 28 जून 2013, at 15:58

मार्केटिंग / रविकान्त

उबलती हुई चीखें हैं
अँधेरे में ठंडाते हैं दर्शक
नजदीक से आती हुई
किसी की अंतिम कराह को सुनकर
ढूँढ़ा जाता है
रघुवीर सहाय की-सी किसी कविता में
उसका हल

मनोरंजन का बाजार
ऊब की दुनिया में
फैलता चला गया है

और ज्यों-ज्यों
विभीषिकाएँ नजदीक आती गईं हैं,
पॉलीथीन बंद ऊब का सट्टा बाजार
अपने सुनियोजित तरीकों से
सारी दुनिया में फैला दिया गया है

हमारे रोएँ, बाल; और
त्वचा, खाल बनती जा रही है

इसका अर्थ?
और क्या अर्थ हो सकता है इसका!