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मार्च / गुल मकई / हेमन्त देवलेकर

सोलहवें साल की तरह
प्रवेश करता है मार्च
मिट्टी के कौमार्य में

झरते हैं पत्ते
मिट्टी रजस्वला हुई

तरुणाई की उद्दाम उमंगें हैं फूल
सारी ऐंद्रिकता कितनी सुगंधित और निष्पाप

मिट्टी की छातियों का
गुलाबी उभार हैं :
पीले फूलों से भरे चमकते पेड़

परिव्राजक वसंत फिर लौटा है
मिट्टी अपनी मधुबनी देह
नैवेद्य की तरह उसे अर्पण करती है।