प्रतिदिन एक विछोह हुआ है
प्रतिदिन मैंने मोह किया
वन-उपवन में जो कुछ पाया
जयमाला में पोह दिया
अनगढ़ है पर सुन्दर है यह
मेरे मन का संचय है
फूल विवश मुरझा जाएँ
पर धागा ? वह मृत्युंजय है
गुँथी रहेगी माला, चाहे
जग सौरभ से भर न सके
जीवन की जय हो, यह जन
यह रण चाहे जय कर न सके ।