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मासूमियत / अनिता मंडा

दुधमुँहे बच्चे
नींद में थिरकाते हैं
होंठों की तितलियाँ
मुग्ध मन माँएँ
निहारती हैं
एकटक

बो आती हैं
बालकनी के गमलों में
गुलाब, मोगरा और गेंदा
फूलों पर मंडराने आती हैं तितलियां,
तितलियों की
थिरकन संग
पाँव पटकते हैं
बच्चे

लहरें उठती हैं
सवालों की जवाबों की
यूँ पक्के होते हैं सबक
रंगों के,
खुशबू के,
उड़ानों के,
कोमलता के,
सहजीवन के
मासूमियत पाती है विस्तार

माँ सूर्य को जल देती है
तुलसी को सींचती हुई कहती है

बचे रहें
फूल, खुशबू ,तितलियाँ,
परिंदे, पेड़, बीज
बचे रहें
नदी, पहाड़, समंदर,
चाँद और तारे
बची रहे मासूमियत

ख़ुदाया !
हर माँ की दुआ क़बूल हो