इसी में बहती है
मन्दाकिनी अलकनन्दा
इसी में चमकते हैं
कैलाश नीलकण्ठ
इसी में खिलते हैं
ब्रह्मकमल
इसी में फड़फड़ाते हैं
मानसर के हंस
मिट्टी की काया है यह
इसी में छिपती है
ब्रह्माण्ड की वेदना।
इसी में बहती है
मन्दाकिनी अलकनन्दा
इसी में चमकते हैं
कैलाश नीलकण्ठ
इसी में खिलते हैं
ब्रह्मकमल
इसी में फड़फड़ाते हैं
मानसर के हंस
मिट्टी की काया है यह
इसी में छिपती है
ब्रह्माण्ड की वेदना।