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मिट्टी बोलती है (नवगीत) / रमेश रंजक

रहट जब चकरोड में आ जाए
और सूखी रोटियाँ खा जाए
                 मिट्टी बोलती है

बोलती है छन्द जो सन्दर्भ में अपने
टूट जाते हैं बया के घोंसले-से
                 झूलते नीले-हरे सपने

हर पुराने शब्द में
ध्वन्यर्थ गहरा घोलती है
              मिट्टी बोलती है

अर्थ ये इतिहास को
भूगोल से यूँ जोड़ देते हैं
रीति में डूबी हुई
पगडंडियों को मोड़ देते हैं

झुर्रियों के बीच में धँस कर
आदमी में आदमी को तोलती है
                    मिट्टी बोलती है