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मिथिलाक-किशोरी / कालीकान्त झा ‘बूच’

हम मिथिलाक नवल किशोरी
समय पाबि गंगा बनि पसरब
जत' जत' अछि पापक मोड़ी...

सीता बनि सुख सेज त्यागि क'
राति राति भरि जागि -जागि क'
लंका सं गिरिराज शिखर धरि
बान्हब देश परेमक डोरी...

रामक लेल विराम बनब नहि
जरियो क' हम झाम बनब नहि
पायब जौं अपमान असह तँ
माइक कोर खसब बलजोड़ी...

अयलहुँ बनि हरबाहक बेटी
लागि गेलहुँ नरनाहक घेंटी
कपटक दसमस्तक फोड़बा क'
छिनबायब छल छद्मक झोड़ी...

होब' काल आन सं खंडित
भ' भ' क' हमरे सं मंडित
रखि सकताह मान मिथिला केर
दम्पति गौरि-महेशक जोड़ी...

देरी भेल बहुत हम जागी
ज्ञानक फाटलि गुद्दरि तागी
जागू अहूँ स्वामि हे भंगिया
कहिया धरि बनि रहब अघोरी...