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मिनख (02) / कन्हैया लाल सेठिया

फिरूं सोजतो
कठै मिनख ?
फिरूं जोवंतो
कठै मिनख ?
दीख्यो आंतो
एक जणो
उमग्यो हियै में
हरख
पूछयो मैं
तूं कुण
बोल्यो मैं बामण
दीखै कोनी तनैं
गळै में जनेऊ
लिलाड़ पर तिलक ?
कांई दैखै आंख्या फाड़’र
लागै तूं साव गिंवार
नहीं करी मनैं दंडोत
मैं हुयो सु़त्र सुण’र आ बात
कोनी लादै मिनख
जाणली साच परतख !