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मिलने की उम्मीद जगाते / ज्ञानेन्द्र पाठक

मिलने की उम्मीद जगाते रहते हैं
मुंडेरों पर कौए आते रहते हैं

यूँ भी अपना मन बहलाते रहते हैं
हम उसकी गलियों में जाते रहते हैं

कितने मनमौजी होते हैं दीवाने
हर हालत में हँसते गाते रहते हैं

चलना है कैसे उसको इक रस्सी पर
लड़की को हालात सिखाते रहते हैं

तेरी स्मृति के वाहन मन के पथ पर
आते जाते धूल उड़ाते रहते हैं

ये जीवन इक भूलभुलैया है साहिब
हम सब इसमें चक्कर खाते रहते हैं

बिल्कुल भोले भाले हैं ये 'पाठक' जी
सबको दिल की बात बताते रहते हैं